Baudh Vivah बौद्ध धर्म से विवाह कैसे होता है?

बौद्ध विवाह संस्कार: हर लड़का-लड़की के जीवन का एक महत्वपूर्ण लम्हा होता है, जिसे हर युवा अपने विवाह को लेकर कुछ ना कुछ स्पेशल करना चाहते हैं, क्योंकि शादी मोस्टली जीवन में एक ही बार होती है जिसमें दो अलग-अलग परिवार जीवन भर के लिए रिश्तेदारी के डोर में बंध जाते हैं, और एक नई जनरेशन को आने वाली जनरेशन के लिए एक दूसरे को समर्पित करते हैं, साथ ही बेहतर, खुशहाल और उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। Buddhist Marriage Rituals Complete Information.

बौद्ध धर्म से विवाह कैसे होता है?

बहुत ज्यादा प्रमाणिकता के साथ यह नहीं कहा जा सकता की दो परिवारों की सोच एक जैसी हो उनके कल्चर उनके संस्कार हो सकता है बहुत ही अलग है, यदि बेटी दूसरे माहौल में पली बढ़ी हुई होगी, थोड़ा तो आदत बदल ना बहुत ही दुर्लभ हो जाएगा, और अगर इसके अपोजिट बोला जाए कि यदि लड़की की परवरिश बुद्धिस्ट परिवार में  हुई हो, और उसका बौद्ध विवाह किसी ऐसे परिवार से हो जाए जो बुद्धिस्ट ना हो अंबावता कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, (यह मात्र एक सामाजिक एक्सपेरिमेंट के तौर पर बता रहा हूं इसे अपने ऊपर या अन्यथा ना लें)। bauddh dharm se vivah kaise hota hai.

बौद्ध विवाह हेतु यदि किसी को शादी का प्रपोजल भेज रहे हैं तो मुख्य रूप से लड़का यह लड़की जैसी भी हो उसका स्वभाव  शिक्षा जरूर एक बार पूरा रिव्यू कर ले,  लड़का कैसे जीवन यापन करेगा शादी के बाद उसकी रोजी-रोटी क्या है, जरूर देखना एक बार वही चीज लड़की पर भी लागू होता है बाकी आप खुद समझदार हैं। baudh vivah sanskar.

बौद्ध विवाह baudh vivah से पहले सगाई संस्कार (रिंग सेरेमनी) जिसे आज की जनरेशन में इस कार्यक्रम को काफी पसंद किया जाता है, वैसे तो बौद्ध धम्म ऐसा कोई बदलता नहीं है लेकिन दोनों परिवार राजी हैं तो उनकी और बच्चों की खुशी के लिए किया जा सकता है, वर पक्ष, कन्या पक्ष द्वारा निश्चित स्थान एवं समय पर पहुंचकर कन्या को समाज के समक्ष (मित्र—रिश्तेदार) भावी वधु के रूप में स्वीकारने हेतु अपनी सहमति देते है। रीति—रिवाजों के अनुसार कन्या—वर को अंगूठी, वर—कन्या को अंगूठी पहनाता है। उपस्थित लोंगों द्वारा उपहार आदि भेंट किया जा सकते है। भिक्क्षु संघ द्वारा बुद्ध वचनों से आशीर्वाद दिया जाता है। वर—वधु तथा उनके माता—पिता द्वारा भगवान बुद्ध को पंचाग प्रणाम तथा उपस्थित भिक्क्षु संघ को पंचाग प्रणाम किया जाये।

बौद्ध विवाह हेतु तिथि निर्धारण दोनों घर के बड़े-बुजुर्ग (जिम्मेदार व्यक्ति) अपनी आम सहमति से कर सकते है। तिथि निर्धाण करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिये।

बौद्ध धम्म विवाह में फालतू-खर्च करना मना है, लेकिन आज के दौर में लोग जी भर के पैसा खर्च करते हैं, कौन समझाने जाए, खैर छोड़िए जनाब अब बात करते हैं, विवाह के बारे, विवाह का ऐसा तारिख फिक्स करना चाहिए, इसमें कोई लगन का समय नहीं हो क्योंकि आदर्श बौद्ध विवाह में लगन से कोई मतलब नही होता जब लड़का-लड़की  और घर परिवार वाले राज़ी तो फ़ौरन कर दे उनकी शादी।

बौद्ध विवाह कब करनी चाहिए?

बौद्ध विवाह Baudh Vivah गुलामी मौसम में करना चाहिए जिससे मेहमानों को कैसी तरह की असुविधा ना हो, अगर बात करो तो ज्यादातर अगर शादी का मन बन रहा है तो नवंबर में या फिर फरवरी में ज्यादा अच्छा रहता है क्योंकि इस समय मौसम ना तो बहुत ज्यादा ठंड रहता है ना तो बहुत ज्यादा खराब है सुझाव यही है कि इसी बीच में विवाह की तारीख फिक्स करनी चाहिए।

आदर्श बौद्ध विवाह संस्कार किसी त्योहार पर जैसे बुद्ध पूर्णिमा के दिन नहीं रखें तो ज्यादा बेहतर होगा, संभवत आपको असुविधा नहीं होगी, क्योंकि इन दिनों बुध विहार तो खाली नहीं होता है दूसरी बात यह कि योग्य बौद्ध भिक्षु की उपलब्धता में भी असुविधा होगी, और यदि बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही आप प्लानिंग कर रहे हैं, तो अपने सुविधानुसार कर भी सकते हैं इसमें कोई हर्ज नहीं है।

दरअसल बौद्ध विवाह संस्कार Buddhist Marriage Rituals बुध विहार में ही हो तो और बेहतर है लेकिन यह कोई कंडीशन नहीं है तो बुध विहार में शादी किया जाए आप मैरिज हाल सामुदायिक हाल या फिर जहां आप रहते हैं वहां कहीं अपनी सुविधानुसार अरेंजमेंट करके स्थान/हाल को बुक कर देना चाहिए।

बौद्ध विवाह कितने दिन का होता है?

 

यदि दोनों परिवारों के बीच आपसी सहमति से किसी सार्वजनिक अवकाश के दिन जैसे (शनिवार, रविवार) के दिन तारीख़ सुनिश्चित किया जाता है, तो वहां और भी बेहतर होगा क्योंकि उस टाइम ज्यादा लोग विवाह संस्कार में उपस्थित हो सकेंगे और कोई सरकारी कार्य भी आपको उस दिन नहीं करना होगा, हां ऑफिशियल छुट्टी आप ले सकते हैं यदि आप सरकारी या प्राइवेट सेक्टर में कार्यरत है।

बुद्धिस्ट रीति रिवाज Buddhist Marriage Rituals से बौद्ध विवाह संस्कार दिन में भी संपन्न किया जा सकता है यदि  किसी वजह से दिन में नहीं हो पाए तो रात में भी कर सकते हैं वैसे मोस्टली तो आज कल का ट्रेन है कि अधिकतर शादियां रात में ही संपन्न की जाती है लेकिन अगर आईडियली देखा जाए तो बहुत विवाह संस्कार रात्र के 10ः00 से 11ः00 बजे तक संपन्न करा ले क्योंकि ज्यादा देर होने पर मेहमान घर चले जाते हैं इस वजह से उनकी उपस्थिति और रात्रि में कम हो जाती है और और बहुत विवाह  संस्कार को पूरी तरीके से देख भी नहीं पाते यदि जल्दी करते हैं तो भोजन करने के पश्चात मेहमान शादी में भी शरीफ हो जाते हैं जिससे एक दिक्कत आती है कि मेहमान की उपस्थिति ना होने की वजह से लड़का और लड़की उनके आशीर्वाद से वंचित रह जाते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि कुछ लोग विवाह संस्कार देखने से वंचित भी रह जाते हैं क्योंकि वह समय बीतने के बाद बोर होकर चले जाते हैं।

पूजा के लिए आवश्यक सामग्री:

1. तथागत बुद्ध की सुन्दर मूर्ति।

2. यदि मूर्ति मौजूद न हो तो फोटो पूजा हेतु उपयोग किया जा सकता है।

3. मूर्ति के टेबल तथा, भिक्क्षु-संघ के लिये भी उचित आसन

4. सफ़ेद रंग का कपड़ा (मेज पोश) यदि संभव हो तो नया

5. अगरबत्ती व मोमबत्ती

6. फूल व पीपल के साफ़ पत्ते, सफेद धागा

7. धातु का लोटा या मिट्‌टी का छोटा घड़ा  (स्वच्छ पानी भरा हुआ।)

8.  खीर/फल /भोज्य पदार्थ/ अपनी क्षमतानुसार तथा श्रद्धानुसार

बौद्ध भिक्क्षु द्वारा सम्पूर्ण पूजा की विधि:

अगर आइडियल बात की जाए तो दूल्हा और दुल्हन को सफेद वस्त्र शादी के दिन पहनना चाहिए, क्योंकि अक्सर आपने देखा होगा इंटरनेट वगैरा पर, कि जो बुद्धिस्ट देश हैं वहां पर मोस्टली सफेद रंग के कपड़ों में ही विवाह संपन्न किया जाता है, लेकिन हो सकता है यहां पर मेरी बात आपको बुरी लग रही हो, लेकिन जो नियमतः है वही मैं बाता रहा हूँ, बाकी आपकी इच्छा कुछ भी पहन ले, यदि संभव हो तो दोनों पक्ष के माता-पिता भी श्वेत वस्त्र ही धारण करें, यहां पर एक बात और कहना चाहता हूँ, कि अक्सर स्टेज पर लोग भीड़ लगा देते हैं, लोग जो उचित नहीं है क्योकि नीचे के लोग जो बैठे होते हैं वह देख नहीं पाते हैं इसलिए कोशिश करेगी स्टेज पर कुछ मुख्य लोग ही बैठे हैं, ताकि बौद्ध विवाह संस्कार संपन्न होते हुए देखने में किसी को दिक्कत ना है।

सील याचनासील याचना:

उपासकगण (एक साथ)— ओकास, अहं भन्ते! त्रिसरणेन सह पंचशीलं धम्मं याचामि, अनुग्गहं कत्वा सीलं देथ मे भन्ते।

दुतियम्पि, ओकास, अहं भन्ते! त्रिसरणेन सह पंचशीलं धम्मं याचामि, अनुग्गहं कत्वा सीलं देथ मे भन्ते।

ततियम्पि, ओकास, अहं भन्ते! त्रिसरणेन सह पंचशीलं धम्मं याचामि, अनुग्गहं कत्वा सीलं देथ मे भन्ते।

भन्ते या आचार्य— यमहं वदामि, तं वदेहि/वदेथ।

उपासक— आम,भन्ते या आचरियो।

भन्ते— नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स (एक बार)

उपासक— नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स (तीन बार)

भन्ते: तिसरण

बुद्धं सरणं गच्छामि।

धम्मं सरणं गच्छामि।

संघं सरणं गच्छामि।

दुतियम्पि, बुद्धं सरणं गच्छामि।

दुतियम्पि, धम्मं सरणं गच्छामि।

दुतियम्पि, संघं सरणं गच्छामि।

ततियम्पि, बुद्धं सरणं गच्छामि।

ततियम्पि, धम्मं सरणं गच्छामि।

ततियम्पि, संघं सरणं गच्छामि।

पंचशील:

पाणातिपाता वेरमणी सिंक्खापदं समादियामि।

अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।

कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।

मुसावादा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।

सुरामेरयमज्ज, पमादट्‌ठाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।

भन्ते: तिसरणेन सद्धिं पंचशीलं धम्मं साधुकं सुरक्खितं कत्वा अप्पमादेन संपादेतब्वं।

उपासकगण—आम भन्ते।

विधिनुसार जब तक शील-ग्रहण करने की प्रक्रिया चल रही हो, तब तक सभीधम्म धम्म बंधुओं तथा उपासक/उपास्थिका को हाथ जोड़कर भगवान बुद्ध की प्रतिमा की तरफ मुंह करके (वज्रासन मुद्रा) में मलतब दोनों घुटने, और पंजों के बल पर बैठ जाना, चाहिए शील ग्रहण करने के पश्चात भगवान बुद्ध को तीन बार पंचांग-नमस्कार साथ ही साथ भिक्क्षु-संघ को भी तीन बार पंचांग नमस्कार करना चाहिए।

बौद्ध विवाह पूजा गाथाएं:

पुष्प पूजा 🙏

वण्ण गन्ध गुणोपेतं एतं कुसुम सन्तति।

पूजयामि मुनिन्दस्स, सिरीपाद सरोरूह।।

धूप पूजा 🙏

गन्धसम्भारयुत्तेन धूपेनाहं सुगन्धिना।

पूजये पूजनेय्यन्तं, पूजाभाजनमुत्तमं।।

सुगन्धि पूजा 🙏

सुगन्धिकाय वदन अनन्त गुणगन्धिना।।

सुगन्धिनाहं गन्धेन पूजयामि तथागतं।।

प्रदीप:

घनसारप्पदित्तेन दीपेन तमधन्सिना।

तिलोकदीपं सम्बुद्धं पूजयामि तमोनुदं।।

चैत्य पूजा 🙏

वन्दामि चेतियं सब्बं सब्बाठानेसु पतिटि्‌ठतं।

सारीरिकधातु महाबोधिं बुद्धरूपं सकलं सदा।।

बोधि वन्दना🙏 

यस्स मूले निसिन्नोव सब्बारि विजयं अका।

पत्तो सब्बञ्‌ञुतं सत्था वन्दे तं बोधिपादपं।।

इमे हेते महाबोधि लोकनाथेन पूजिता।

अहम्पि ते नमस्सामि बोधिराजा नमत्थु ते।।

इसके बाद बुद्ध वन्दना धम्म वंदना, संघ वंदना करनी चाहिए।

बुद्ध वन्दना: बुद्ध, धम्म एवं संघ वन्दना

इतिपि सो भगवा अरहं सम्मासम्बुद्धो, विज्जाचरण सम्पन्नो,

सुगतो लोकविदु अनुत्तरो, पुरिसदम्म सारथी सत्था,देवमनुस्सानं बुद्धो भगवाति।

बुद्धं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि।1।

ये च बुद्धा अतीता च, ये च बुद्धा अनागता।

बुद्धं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि।1।

पच्चुपन्ना य चे बुद्धा, अहं वन्दामि सब्बदा ।2।

नत्थि मे सरणं अञ्‌ञं बुद्धो मे सरणं वरं।

एतेन सच्चवज्जेन, होतु मे जयमंगलं ।3।

उत्तमंगेन वन्देहं, पादपंसु वरूत्तमं।

बुद्धे यो खलितो दोसो, बुद्धो खमतु तं ममं ।4।

यं किञि्‌च रतनं लोके विज्जति विविधा पुथु।

रतनं बुद्ध समं नत्थि तस्मा सोत्थि भवन्तु मे ।5।

यो सन्निसिन्नो वरबोधिमूले मारं ससेनं महति विजेत्वा।

सम्बोधि मागच्छि अनन्तञाणो लोकुत्तमो तं पणमामि बुद्धं ।6।

धम्म वन्दना 🙏

स्वाखातो भगवता धम्मो सन्दिटि्‌ठको, अकालिको,

एहिपस्सिको, ओपनेय्यिको, पच्चत्तं वेदितब्बो, विञ्‌ञूहीति ।

धम्मं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि ।1।

ये च धम्मा अतीता च, ये च धम्मा अनागता।

पच्चुप्पन्ना च ये धम्मा अहं वन्दामि सब्बदा।2।

नत्थि मे सरणं अञ्‌ञ धम्मो मे सरणं वरं।

एतेन सच्चवज्जेन होतु मे जयमंगलं ।3।

उत्तमंगेन वन्देहं धम्मञ्‌च दुविधं वरं ।

धम्मे यो खलितो दोसो धम्मो खमतु तं ममं।4।

यं किञि्‌च रतनं लोके, विज्जति विविधा पुथु।

रतनं धम्म समं नत्थि तस्मा, सोत्थि भवन्तु मे। 5।

अट्ठांगिको अरिय पथो जनानं, मोक्खप्पवेसो उजुको व मग्गो।

धम्मो अयं सन्तिकरो पणीतो, निय्यानिको तं पणमामि धम्मं ।6।

संघ वन्दना 🙏

सुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, उजिपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो,

ञायपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, सामीचिपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, यदिदं चत्तारि पुरिसयुगानि अट्‌ठापुरिस

पुग्गला, एस भगवतो सावकसंघो,आहुनेय्यो, पाहुनेय्यो, दक्खिनेय्यो, अञ्‌जलिकरणीयो, अनुत्तरं पुञ्‌ञक्खेत्त

लोकस्साति। संघं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि।1।

ये चं संघा अतीता च, ये च संघा अनागता।

पच्चुप्पन्ना च ये संघा, अहं वन्दामि सब्बदा।2।

नत्थि मे सरणं अञ्‌ञं संघो में सरणं वरं।

ऐतेन सच्च वज्जेन, होतु मे जयमंगलं।3।

उत्तमंगेन वन्देहं, संघञ्‌च तिविधोत्तमं।

संघे यो खलितो दोसो, संघो खमतु तं ममं।4।

यं किञि्‌च रतनं लोके, विज्जति विविधा पुथु।

रतनं संघ समं नत्थि तस्मा, सोत्थि भवन्तु में।5।

संघो विसुद्धो वर दक्खिणेय्यों, सन्तिन्द्रियो सब्बमलप्प हीनो।

गुणेहि नेकेहि समद्धिपत्तो, अनासवो तं पणमामि संघं।6।

बौद्ध विवाह प्रक्रिया- (समर्पण विधि)

बौद्ध संस्कार में कन्यादान नहीं होता है क्योंकि पुत्री कोई वस्तु नहीं है। दूसरे यह सार्वभौमिक सत्य है कि दान दी हुयी वस्तु पर दानदाता का अधिकार नहीं रहता। बौद्ध धम्म में ऐसा बिलकुल नहीं है कि शादी के बाद बेटी से कोई सम्बंध ही न रहे। यही वजह है कि बौद्ध-धम्म में इसे समर्पण विधि कहा जाता है, बौद्ध भिक्क्षु/भंते जी लड़की के पिता दाएं हाथ सीधी अवस्था में और फिर उसके ऊपर लड़की का दाहिना हाथ उसी डायरेक्शन में रखवाएं, वर के ऊपर कन्या दाया हाथ उल्टी डायरेक्शन में रखवायें, अब लड़की के पिता का दाया हाथ उसी  पोजीशन में रखें, हां मौके पर अगर लड़की की मां वहां मौजूद हूं तो उनका भी दाहिना हाथ लड़की के हाथ के ऊपर रखो आएं हाथों के नीचे एक थाली रख दे। 

(a) लड़की के मां-बाप द्वारा समर्पण त्रीसरण (बुद्ध-धम्म संघ) की पवित्र स्मृति व भावना कर, मौजूद सर्व समाज को साक्षी मानकर हम अपनी प्रिय पुत्री (लड़की का नाम) आपके पुत्र वधू के रूप में समर्पित करते हैं। आज से इसके दुःख-सुख तथा सभी प्रकार की माता-पिता समान संरक्षण का उत्तरदायित्व आपको समर्पित करते हैं। हमें उम्मीद और विश्वास है कि यह रिश्ता हमारा मधुर और दोनों परिवारों की सुख-समृद्धि में सहायक होगा।

 

वहां उपस्थित और स्टेज पर बैठ सभी लोगों द्वारा  ऊंचे स्वर में साधु-साधु-साधु कह कर अनुमोदन करना चाहिए।

(b) कन्या द्वारा समर्पण— त्रिरत्न (बुद्ध धम्म संघ) की पावन स्मृति के साथ उपस्थित समाज को साक्षी मानकर मैं अपने को श्री.......................जी की पत्नी रूप में समर्पित करती हूं तथा इन्हें परिरूप में स्वीकर करके पूरा जीवन भर इनके साथ रहने

स्टेज पर व वहां उपस्थित सभी लोगों द्वारा साधु-साधु-साधु कह कर अनुमोदन करना चाहिये।

(c) वर द्वारा अनुमोदन— त्रिरत्न (बुद्ध धम्म संघ) की पावन स्मृति व भावना कर उपस्थित समाज को साक्षी मानकर मैं अपने को .................जी को पति के रूप में समर्तित करता हॅूं, तथा इन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करके, जीवन-भर इनके साथ रहने की प्रतिज्ञा करता हॅूं।

स्टेज पर व वहां उपस्थित सभी लोगों द्वारा साधु-साधु-साधु कह कर अनुमोदन करना चाहिये।

फिर उसके बाद बौद्ध निम्न गाथाओं को सस्वर-पाठ करते हुये, लोटे का जल एकत्रित हाथों पर इस तरह से डालते रहे कि जल नीचे थाल में एकत्रित होता रहे, थाल का जल पेड़ पौधों में डलवा देना चाहिये।

इच्छितं पच्छितं तुरहं रिवप्पमेव समिज्झुत।

सब्बे पूरेन्तुचित्त संकप्प चन्दो पन्नरसो यथा।।

सब्बीतियों विवज्जन्तु सब्ब रोगो विनस्सतु।

मा ते भवत्वन्तरायो सुखी दीर्घायुको भव।।

भवतु सब्ब मंगलं रखन्तुसब्ब देवता,

सब्ब बुद्धानुभावेन सदा सोत्थि भवन्तुते।

भवन्तुसब्ब मंगलं रखन्तु सब्ब देवता,

सब्ब धम्मानुभावेन सदा सोत्थि भवन्तु,

भवतु सब्ब मंगलं रखन्तु सब्ब देवता,

सब्ब संधानुभावेन सदा सोत्थि भवन्तुते।।

तत्पश्चात बाद हाथों को अलग-अलग कर लें, तथा थाली के जल को पेड़-पौधों में डलवा दें।

वर की प्रतिज्ञाएं:

👉 आदरणीय बौद्ध भिक्षु/भंते जी द्वारा पांच पवित्र/पावन प्रतिज्ञायें ग्रहण करायी जाये।

1. मैं अपनी पत्नी का सदा सम्मान करने की प्रतिज्ञा ग्रहण करता हॅूं।

2. मैं कभी भी अपनी पत्नी का अपमान नहीं करूॅंगा, न ही किसी अन्य से अपमानित होने दूॅंगा ये प्रतिज्ञा ग्रहण करता हॅूं।

3. मैं मिथ्या आचरण नहीं करने की प्रतिज्ञा ग्रहण करता हॅूं।

4. मैं आपको सम्यक आजीविका द्वारा कमाये धन—दौलत से संतुष्ट रखने की प्रतिज्ञा ग्रहण करता हॅूं।

5. मैं आपको अलंकार आदि देकर संतुष्ट रखने की प्रतिज्ञा ग्रहण करता हॅूं।

मैं इन पांचों प्रातिज्ञाओं का पूर्ण रूप से पालन करूगा।

वधू की प्रतिज्ञाएं:  

👉 त्रिरत्न की पावन-स्मरण व भावना कर उपस्थित समाज को साक्षी मानकर मैं प्रतिज्ञा करती हॅूं।

1. मैं अपनें पति का सदा सम्मान करने की प्रतिज्ञा ग्रहण करती हॅूं।

2. मैं परिजन व परिवार के लोगो की भलि-भांति देख-रेख करने की प्रतिज्ञा गृहण करती हॅूं।

3. मैं मिथ्या आचरण से विरत रहकर अपने पति की विश्वासपात्र रहने की प्रतीज्ञा ग्रहण करती हॅूं।

4. मैं आपके उपार्जित धन दौलत की रक्षा करने की प्रतिज्ञा गृहण करती हॅूं।

5. मैं घर के सभी कार्यों में दक्ष और आलस्य रहित रहने की प्रतिज्ञा गृहण करती हॅूं।

स्टेज पर उपस्थित सभी जाति बंधुओं के हांथों में पुष्प की पंखुड़ियां पकड़ा दी जायें। भिक्क्षु संघ जय मंगल उट्‌ठगाथा का पाठ करेंगे।

जय मंगल अट्‌ठागाथा:

बाहु सहस्समभि निम्मित सावुधन्तं, गिरिमेखलं उदित घोर ससेन मारं।

दानादि धम्मविधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।1।

मारतिरेक मभियुज्झित सब्बरत्तिं, घोरम्पनालवक मक्खमथद्ध—यक्खं।

खन्ती सुदन्तविधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि ।2।

नलागिरिं गजवरं अतिमत्ति भूतं, दावग्गि चक्कमसनीव सुदारूणन्तं।

मेत्तम्बुसेक विधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि ।3।

उक्खित्त खग्गमतिहत्थ सुदारूणन्तं, धावन्ति योजनपथं अंगुलिमालवन्तं,

इद्धीभिसंखत मनो जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।4।

कत्वानि कट्‌ठमुदरं इव गब्भिनीया, चिञ्‌चाय दुट्‌ठवचनं जनकाय मज्झे।

सन्तेन मोम विधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।5।

सच्चं विहाय—मतिसच्चक वादकेतुं, वादाभिरोपितमनं अतिअन्धभूतं।

पञ्‌ञापदीपजलितो जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।6।

नन्दोपनन्द भुजगं विवुधं महिद्धिं, पुत्तेन थेर भुजगेन दमापयन्तो।

इद्धूपदेस विधिवा जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।7।

दुग्गहदिट्‌ठ भुजगेन सुदट्‌ठ हत्तं, ब्रह्मं विसुद्धि जुमिद्धि, वकाभिधानं।

ञाणगदेन विधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।8।

एतापि बुद्ध जयमंगल अट्‌ठागाथा, यो वाचको दिनदिने सरते मतन्दी।

हित्वाननेक विविधानि चुप्पद्ववानि, मोक्खं सुखं अधिगमेय्य नरो सपञञो।9।

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प्रत्येक बार जब तं तेजसा भवतु ते जय मंगलानि के उच्चारण के साथ वर वधू पर पुश्प वर्शा करेंगें। अंत में ''विवाह कार्य सम्पन्नो, वर वधु सुखी होन्तु'' का उच्चाण करते हुये महामंगल सुत्त का पाठ किया जायेगा। उपस्थित लोग वर-वधु को भेंट-उपहार आदि यदि कुछ देना चाहें तो इस समय दे सकते है। मंगलसूत्र धागे को तिहरा कर वधु-वर के हाथ में और वर-वधु के हाथ बांध दे।

मिष्ठान से सभी का मुंह मीठा कराया जाये वर-वधु द्वारा संस्कार में उपस्थित भिक्क्षु संघ को यथा सामर्थ दान दिया जाये। माता-पिता द्वारा भी भिक्क्षु संघ को यथा सामर्थ दान दिया जाये।

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वर वधु को माता-पिता तथा सास-सासुर के चरण स्पर्श करते हुये आशीर्वाद लेना चाहिये। तदोपरान्त उपस्थित यान्ति बंधुओं को हांथ जोड़कर नमो बुद्धाय कहना चाहिये। जाति बंधुओं द्वारा हाथ उठाकर साधु-साधु कहना चाहिए।

पचांग नमस्कार- अर्थात प्रणाम करते समय शरीर के पॉच अंग पृथ्वी पर छूने चाहिए।

  9th September, 2023